🙏 नमस्कार दोस्तों मैं सूरज कुमार आप सभी साथियों का इस लेख में हार्दिक स्वागत करता हूं। दोस्तों अभी हाल ही में भारत की सर्वोच्च अदालत का एक फैसला आया है।
जिसमें कहा गया है कि भारत मौजूदा अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण मिल रहा है। उसमें अब कोटे अंदर कोटा का प्रावधान किया गया है।
अब राज्य सरकारों को यह अधिकार मिल गया है कि वे अपने राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति की उप-जातियों के आधार पर आरक्षण का बंटवारा कर सकती हैं।
यानी 21% आरक्षण में किस जाति को कितना प्रतिशत आरक्षण देना है। यह राज्य सरकार तय करेगी।
अनुसूचित जाति और जनजाति को इस फैसले से क्या फायदा और क्या नुकसान हो सकता है?
देखिए इस फैसले फायदा और नुकसान दोनों हैं। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि एक पीढ़ी को आरक्षण का लाभ मिल चुका है तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। क्योंकि अब वह सक्षम हो चुका है।
उसे अब आरक्षण की जरूरत नहीं है। वह इतना सक्षम हो जाएगा कि सामान्य वर्ग में नौकरी ले सकता है।
इस फैसले के बाद उन सभी अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण का लाभ मिल सकता है। जो अभी भी काफी पिछड़े हुए हैं।
लेकिन वही अनुसूचित जाति और जनजाति के कुछ नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है इससे फायदा कम नुकसान ज्यादा है।
उनका एक तर्क यह भी है कि इससे दलित सामाज में भेदभाव हो सकता है। जहां लोग अभी तक अपने को सिर्फ दलित समाज में जोड़कर रखते थे। अब उनमें यह भेदभाव हो सकता है।
कुछ जातियों को यह लगेगा कि यह हमारा भाई हमारा ही हक खा रहा है।
इस फैसले पर हमारी अपनी राय।
हमारा मानना है कि यह फैसला शायद अभी के लिए नहीं है क्योंकि आज जो भी अनूसूचित जाति या जनजाति सामाज से नौकरी पा रहे हैं। उन्हें/उनको सामान्य वर्ग का व्यक्ति उन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति का व्यक्ति समझता है ना कि सामान्य वर्ग का।
तो इसलिए माननीय न्यायालय को सोचना चाहिए कि जबतक सामाजिक न्याय न सुचारू रूप से न मिलने लगे आरक्षण में किसी भी बदलाव कि आवश्यकता नहीं है।
माननीय न्यायालय को यह आप्शन रखना चाहिए कि अनुसूचित जाति और जनजाति का व्यक्ति स्वयं आरक्षण को छोड़ दें यदि उसे यह एहसास होने लगे कि अब हमें सामाज में सामान्य वर्ग जैसा व्यवहार किया जा रहा है।
भारत में अभी भी बहुत ऐसे जगह है जहां जातिगत भेद-भाव अभी भी बहुत ज्यादा है।
हां फैसले से कुछ जातियों को नुकसान तो कुछ को फायदा हो सकता है। इससे और भी ज्यादा कुछ हो भी नहीं सकता। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों में और अधिक भेद-भाव बढ़ सकता है। यूं कहें तो ये एक बार फिर से बंट सकते हैं।
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